केले की किस्में और जानकारी

केले के पौधे मुसा के परिवार के हैं। मुख्य रूप से फल के लिए इसकी खेती की जाती है और कुछ हद तक रेशों के उत्पादन और सजावटी पौधे के रूप में भी इसकी खेती की जाती है। चूंकि केले के पौधे काफी लंबे और सामान्य रूप से काफी मजबूत होते हैं और अक्सर गलती से वृक्ष समझ लिए जाते हैं, पर उनका मुख्य या सीधा तना वास्तव में एक छद्मतना होता है। कुछ प्रजातियों में इस छद्मतने की ऊंचाई 2-8 मीटर तक और उसकी पत्तियाँ 3.5 मीटर तक लम्बी हो सकती हैं। प्रत्येक छद्मतना हरे केलों के एक गुच्छे को उत्पन्न कर सकता है, जो अक्सर पकने के बाद पीले या कभी-कभी लाल रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। फल लगने के बाद, छद्मतना मर जाता है और इसकी जगह दूसरा छद्मतना ले लेता है।

केले के फल लटकते गुच्छों में ही बड़े होते है, जिनमें 20 फलों तक की एक पंक्ति होती है (जिसे हाथ भी कहा जाता है) और एक गुच्छे में 3-20 केलों की पंक्ति होती है। केलों के लटकते हुए सम्पूर्ण समूह को गुच्छा कहा जाता है, या व्यावसायिक रूप से इसे "बनाना स्टेम" कहा जाता है और इसका वजन 30-50 किलो होता है। एक फल औसतन 125 ग्राम का होता है, जिसमें लगभग 75% पानी और 25% सूखी सामग्री होती है। प्रत्येक फल (केला या 'उंगली' के रूप में ज्ञात) में एक सुरक्षात्मक बाहरी परत होती है (छिलका या त्वचा) जिसके भीतर एक मांसल खाद्य भाग होता है।
खेती
क्षेत्रफल व उत्‍पन्‍न की दृष्‍टि से आम के बाद केले का क्रमांक आता है। केले के उत्‍पादन को देखे तो भारत का दूसरा क्रमांक है। भारत में अंदाजे दोन लाख बीस हजार हेक्‍टर क्षेत्रफल पर केले लगाए जाते हैं। केले का उत्‍पादन करनेवाले प्रांतो में क्षेत्रफल की दृष्‍टी से महाराष्‍ट्र का तिसरा क्रमांक है फिर भी व्‍यापारी दृष्‍टी से या परप्रांत में बिक्रीकी दृष्‍टी से होनेवाले उत्‍पादन में महाराष्‍ट्र पहिला है। उत्‍पादन के लगभग ५० प्रतिशत उत्‍पादन महाराष्‍ट्र में होता है। फिलहाल महाराष्‍ट्र में कुल चवालिस हजार हेक्‍टर क्षेत्र केले की फसल के लिए है उसमें से आधेसे अधिक क्षेत्र जलगांव जिले में है इसलिए जलगांव जिले को केलेका भंडार कहते है।मुख्‍यतः उत्‍तर भारत में जलगाव भाग के बसराई केले भेजे जाते हैं। इसी प्रकार सौदी अरेबिया इराण, कुवेत, दुबई, जपान और युरोप में बाजारपेठ में केले की निर्यात की जाती है। उससे बड़े पैमाने पर विदेशी चलन प्राप्‍त होता है। केले के ८६ प्रतिशत से अधिक उपयोग खाने के लिए होता है। पके केले उत्‍तम पौष्टिक खाद्य होकर केले के फूल, कच्‍चे फल व तने का भीतरी भाग सब्जी के लिए उपयोग में लाया जाता है।फल से पावडर, मुराब्‍बा, टॉफी, जेली आदि पदार्थ बनाते हैं। सूखे पत्तों का उपयोग आच्‍छन के लिए करते हैं। केले के तने और कंद के टुकडे करके वह जानवरो के लिए चारा के रुप में उपयोग में लाते है। केले के झाड का धार्मिक कार्य में मंगलचिन्‍ह के रुप में उपयोग में लाए जाते हैं।

केले को लगाने का मोसम जलवायु के अनुसार बदलता रहता है कारण जलवायु का परिणाम केले के बढ़ने पर, फल लगने पर और तैयार होने के लिए लगने वाली कालावधी पर निर्भर करता है। जलगाँव जिले में केले लगाने का मौसम बारिश के शुरू में होता है। इस समय इस भाग का मौसम गरम रहता है।

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