एक नींबू के इतने फायदे हैं की
नीबू में ए, बी और सी विटामिनों की भरपूर मात्रा है-विटामिन ए अगर एक भाग है तो विटामिन बी दो भाग और विटामिन सी तीन भाग। इसमें -पोटेशियम, लोहा, सोडियम, मैगनेशियम, तांबा, फास्फोरस और क्लोरीन तत्त्व तो हैं ही, प्रोटीन, वसा और कार्बोज भी पर्याप्त मात्रा में हैं। विटामिन सी से भरपूर नीबू शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही एंटी आक्सीडेंट का काम भी करता है और कोलेस्ट्राल भी कम करता है। नीबू में मौजूद विटामिन सी और पोटेशियम घुलनशील होते हैं, जिसके कारण ज्यादा मात्रा में इसका सेवन भी नुकसानदायक नहीं होता। रक्ताल्पता से पीडि़त मरीजों को भी नीबू के रस के सेवन से फायदा होता है। यही नहीं, नीबू का सेवन करने वाले लोग जुकाम से भी दूर रहते हैं। एक नीबू दिन भर की विटामिन सी की जरूरत पूरी कर देता है। नीबू के कुछ घरेलू प्रयोगों पर लगभग हर भारतीय का विश्वास हैं। ऐसा माना जाता है कि दिन भर तरोताजा रहने और स्फूर्ति बनाए रखने के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में एक नीबू का रस व एक चम्मच शहद मिलाकर पीना चाहिए। एक बाल्टी पानी में एक नीबू के रस को मिलाकर गर्मियों में नहाने से दिनभर ताजगी बनी रहती है। गर्मी के मौसम में हैजे से बचने के लिए नीबू को प्याज व पुदीने के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए। लू से बचाव के लिए नीबू को काले नमक वाले पानी में मिलाकर पीने से दोपहर में बाहर रहने पर भी लू नहीं लगती। इसके अलावा इसमें विटामिन ए, सेलेनियम और जिंक भी होता है। गले में मछली का कांटा फंस जाए तो नीबू के रस को पीने से निकल जाता है।
नींबू के पौधे के लिए पाला अत्यंत हानिकारक है। यह दक्षिण भारत में अच्छी तरह पैदा हो सकता है, क्योंकि वहाँ की जलवायु उष्ण होती है और पाला तथा शीतवायु का नितांत अभाव रहता है। पौधे विभिन्न प्रकार की भूमि में भली प्रकार उगते हैं, परंतु उपजाऊ तथा समान बनावट की दोमट मिट्टी, जो आठ फुट की गहराई तक एक सी हो, आदर्श समझी जाती है। स्थायी रूप से पानी एकत्रित रहना अथवा सदैव ऊँचे स्तर तक पानी विद्यमान रहना, या जहाँ पानी का स्तर घटता बढ़ता रहे, ऐसे स्थान पौधों की वृद्धि के लिए अनुपयुक्त हैं।
नीबू के पौधे साधारणतया बीज तथा गूटी से उत्पन्न किए जाते हैं। नियमानुसार पौधों को 20-20 फुट के अंतर पर लगाना चाहिए। इसके लिए, ढाई फुट x ढाई फुट x ढाई फुट के गड्ढे उपयुक्त हैं। इनमें बरसात के ठीक पहले गोबर की सड़ी हुई खाद, या कंपोस्ट खाद, एक मन प्रति गड्ढे के हिसाब से डालनी चाहिए। पौधे लगाते समय गड्ढे के मध्य से थोड़ी मिट्टी हटाकर उसमें पौधा लगा देना चाहिए और उस स्थान से निकली हुई मिट्टी जड़ के चारों ओर लगाकर दबा देनी चाहिए। जुलाई की वर्षा के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए तभी पौधा लगाना चाहिए। पौधे लगाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जमीन में इनकी गहराई उतनी ही रहे जितनी रोप में थी। पौधे लगाने के बाद तुंरत ही पानी दे देना चाहिए। जलवृष्टि पर निर्भर रहनेवाले क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में कई बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। सिंचाई का परिमाण जलवृष्टि के वितरण एवं मात्रा पर निर्भर है।
हर सिंचाई में पानी इतनी ही मात्रा में देना चाहिए जिससे भूमि में पानी की आर्द्रता 4-6 प्रति शत तक विद्यमान रहे। सिंचाई करने की सबसे उपयुक्त विधि 'रिंग' रीति है।
नीबू प्रजाति के सभी प्रकार के फलों के लिए खाद की कोई निश्चित मात्रा अभिस्तावित नहीं की जा सकती है। पर साधारण रूप से नीबू के लिए 40 सेर गोबर की खाद, एक सेर सुपरफॉस्फेट तथा आधार सेर पोटासियम सल्फेट पर्याप्त होता है। गौण तत्वों की भी इसको आवश्यकता पड़ती है, जिनमें मुख्य जस्ता, बोरन, ताँबा तथा मैंगनीज़ हैं।
जहाँ पर सिंचाई के साधन हैं, वहाँ पर अंतराशस्य लगाना लाभप्रद होगा। दक्षिण भारत तथा असम में अनन्नास तथा पपीता नीबू के पेड़ों के बीच में लगाते हैं। इनके अतिरिक्त तरकारियाँ, जैसे गाजर, टमाटर, मूली, मिर्चा तथा बैगन आदि भी, सरलतापूर्वक उत्पन्न किए जा सकते हैं।
नीबू प्रजाति के पौधों को सिद्धांत: कम काट छाँट की आवश्यकता पड़ती है। जो कुछ काट छाँट की भी जाति है, वह पेड़ों की वांछनीय आकार देने के लिए और अच्छी दशा में रखने के लिए की जाती है।
उत्तरी भारत में साधारणत: फल साल में दो बार आते हैं, परंतु इनके फूलने का प्रमुख समय वसंत ऋतु (फरवरी-मार्च) है। इसके उत्पादन की कोई विश्वसनीय संख्या प्राप्त नहीं है, किंतु नीबू की विभिन्न किस्मों का उत्पादन प्रति पेड़ 150 से 1,000 फलों के लगभग होता है।
नीबू को अनेक प्रकार के रोग तथा कीड़े भी हानि पहुँचाते हैं। इनमें से शल्क (scab), नीबू कैंकर, साइट्रस रेड माइट (Citrus red mite), ग्रीन मोल्ड (Penicillium digitatum), मीली बग (mealy bugs) इत्यादि प्रमुख हैं।
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