चाणक्य नीति से ज़िंदगी बेहतर
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी उम्मीद है ठीक होंगे।
चाणक्य की नीतियों का सरल भाषा में अनुवाद करने तथा उन्हें आधुनिक संदर्भों के साथ जोड़ने के पीछे हमारा यही मकसद है की हम सभी वर्तमान में कुछ बेहतर कर सके तो चलिए शुरू करते हैं
चाणक्य नीति इस शास्त्र का विधिपूर्वक अध्यन करके यह जाना जा सकता है कि कौन सा कार्य करना चाहिए और कौन सा कार्य नही करना चाहिए
यह जानकार वह एक प्रकार से धर्मोप्रदेश प्राप्त करता है की किस कार्य को करने से अच्छा परिणाम निकलेगा और किससे बुरा ।
इससे अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाता है।
लोगो की हित कामना से मैं यहां उस शास्त्र को कहूंगा, जिसके जान लेने से मनुष्य सब कुछ जान लेने वाला सा हो जाता है ।
मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन पोषण से और दुखियों के साथ सम्बंध रखने से , बुद्धिमान व्यक्ति भी दुखी हो जाता है । तात्पर्य यह की मूर्ख शिष्य को कभी भी उचित उपदेश नही देना चाहिए , पतित आचरण वाली स्त्री की संगति करना तथा दुःखी मनुष्यो के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुःख ही उठाना पड़ता है ।
दुष्ट स्त्री , छल करने वाला मित्र , पलटकर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में साप रहता हो , उस घर मे निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है।
विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करे ।
धन से स्त्री की रक्षा करे और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करे ।
आपत्ति से बचने के लिए धन की रक्षा करे , क्योंकि पता नही कब आपदा आ जाए । लक्ष्मी तो चंचल है । संचय किया गया धन कभी भी नष्ट हो सकता है ।
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जिस देश में सम्मान नही, आजीविका के साधन नही, बंधु बांधव अर्थात परिवार नही और विद्या प्राप्त करने को साधन नही हो , वहा कभी नही रहना चाहिए।
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