चाणक्य नीति

 नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी उम्मीद है ठीक होंगे









चाणक्य कहते है

स्त्री का वियोग , अपने लोगो से अनाचार , कर्ज का बंधन  दुष्ट राजा की सेवा , दरिद्रता और अपने प्रतिकूल सभा ( समाज में निंदा ) ये सभी अग्नि न होते हुए भी शरीर को जलाकर नष्ट कर देते है ।






नदी के किनारे खड़े वृक्ष , दूसरे के घर में गई स्त्री , मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं । 
इसमें संशय नही करना चाहिए।







वैश्या निर्धन मनुष्य को , प्रजा पराजित राजा को , पक्षी फलरहित वृक्ष को और अतिथि उस घर को , जहा वे आमंत्रित किए जाते है , को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते हैं ।







बुरा आचरण अर्थात दुराचारी के साथ रहने से , पाप दृष्टि रखने वाले का साथ करने से तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले से मित्रता करने वाला शीघ्र नष्ट हों जाता है ।







मित्रता बराबर वालो मे शोभा पाती हैं , नौकरी राजा की अच्छी होती है , व्यवहार में व्यापारी और घर में सुंदर स्त्री शोभा पाती है।








दोष किसके कुल में नही है ? कौन ऐसा है , जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नही हुए ? सदैव कौन सुखी रहता है ? सुख दुःख तो लगे ही रहते है , रात और दिन का चक्र चलता रहेगा ।







मनुष्य का आचरण व्यवहार उसके खानदान को बताता है , भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है , विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेमभाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है ।

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