चाणक्य नीति हिंदी

 कहा जाता है कि मगधपति धर्मनंद में ने चाणक्य के पिता चणक का वध किया था ।

वह राजा अत्यंत अहंकारी था और सत्ता के नशे मे चूर रहता था ।

प्रजा के सुख दुःख से उसे कोई लगाव नहीं था ।

वह अपने ही भोग विलास में डूबा रहता था ।

चाणक्य ने ऐसे दुष्ट राजा का वंश समूल रूप से नष्ट करने का संकल्प किया और उसे नष्ट कर डाला ।उसे खत्म करके चाणक्य ने अपने प्रिय शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को राजसिहासन पर बैठाया ।

ऐसे थे चाणक्य तो चलिए पढ़ते है चाणक्य नीति 






चाणक्य कहते है
जहां धनी , ज्ञानी , राजा , नदी , और , वैद्य ये पाँच न हो वहा एक दिन भी नही रहना चाहिए ।
भावार्थ यह की जिस जगह पर इन पांचों का अभाव हो ,
वहा मनुष्य को एक भी दिन नही ठहरना चाहिए ।



जहा जीविका , भय, लज्जा , चतुराई  और त्याग की भावना , ये पाँचो न हो , वहां के लोगो के साथ कभी न रहे और न उनसे व्यवहार करे ।




नौकरों को बाहर भेजने पर , संकट के समय भाई बंधुओं को तथा विपत्ति में दोस्त को और धन के नष्ट हो जाने पर अपनी स्त्री को परखना चाहिए अर्थात उसकी परीक्षा लेनी चाहिए।




बीमारी में , विपत्तिकाल में , अकाल के समय , दुश्मनों से दुःख पाने या आक्रमण होने पर , राजदरबार में और श्मशान भूमि में जो साथ रहता है , वही सच्चा भाई अथवा बंधु है ।




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