चाणक्य नीति
नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप सभी उम्मीद है ठीक होंगे
चाणक्य कहते हैं
जो मित्र प्रत्यक्ष रूप से मधुर वचन बोलता हो और पीठ पीछे अर्थात अप्रत्यक्ष रुप से आपके सारे कार्यों में रोड़ा अटकाता हो , ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए , जिसके भीतर विष भरा हो और ऊपर मुंह के पास दूध भरा हो ।
बुरे मित्र पर और अपने मित्र पर भी विश्वास नही करना चाहिए, क्योंकि कभी नाराज होने पर संभवत आपका विशिष्ट मित्र भी आपके सारे रहस्यों को प्रकट कर सकता है ।
मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नही कहना चाहिए , अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने ( सोचे हुए ) कार्य को करते रहना चाहिए।
निश्चित रूप से मूर्खता दुःख दाई है और यौवन भी दुःख देने वाला है , परंतु कष्टों से भी बड़ा कष्ट , दूसरे के घर पर रहना है । ( जवानी में अहंकार करना व होश खोना दुःख का कारण होता है। )
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